उस्का बाजार उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले में एक नगर पंचायत शहर है। उस्का बाजार शहर को 17 वार्डों में विभाजित किया गया है, जिसके लिए हर 5 साल में चुनाव होते हैं। उस्का बाजार नगर पंचायत की जनसंख्या २४,४४४ है जिसमें से १२,७७४ पुरुष हैं जबकि ११,६७० महिलाएं हैं, जैसा कि भारत की जनगणना २०११ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार है।
0-6 आयु वर्ग के बच्चों की जनसंख्या 4073 है जो उस्का बाजार (एनपी) की कुल जनसंख्या का 16.66% है। उस्का बाजार नगर पंचायत में, राज्य के औसत 912 के मुकाबले महिला लिंग अनुपात 914 है। इसके अलावा उस्का बाजार में बाल लिंग अनुपात उत्तर प्रदेश राज्य औसत 902 की तुलना में लगभग 908 है। उस्का बाजार शहर की साक्षरता दर राज्य के औसत से 69.45% अधिक है। 67.68% का। उस्का बाजार में पुरुष साक्षरता लगभग ८०.६३% है जबकि महिला साक्षरता दर ५७.२२% है।
उस्का बाजार नगर पंचायत का कुल प्रशासन 3,968 घरों से अधिक है, जिसमें यह पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति करता है। यह नगर पंचायत की सीमा के भीतर सड़कें बनाने और अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली संपत्तियों पर कर लगाने के लिए भी अधिकृत है।
जोगमाया मंदिर भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। नवरात्र होने के कारण भारी संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं। चमत्कारिक शक्तियों के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर, जिले में ही नहीं दूर-दूर तक विख्यात है। मान्यता है कि यहां मत्था टेकने से मन्नत पूरी होती है। कहते हैं कि माता सोए भाग्य भी जगा देती हैं।
उसका बाज़ार से 10 किलोमीटर दूर जोगिया ब्लॉक में स्थित जोगमाया मंदिर बहुत प्राचीन है। मंदिर के पुजारी श्याम सुंदर कर पाठक बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले विंध्याचल क्षेत्र से मां भगवती की सिद्धि प्राप्त करने के बाद यहां एक सिद्ध योगी लवकेश कर पाठक आए। उन्होंने अपने साथ लाईं कुछ तामसी मूर्तियों को तत्कालीन बांसी नरेश को दे दिया। राजा ने कुछ मूर्तियों की स्थापना राजमहल में कराई और बची मूर्तियों को बूढ़ी राप्ती नदी में प्रवाहित कर दिया। महायोगी लवकेश रोजाना ककरही घाट पर स्नान करने जाते थे। बताया जाता है कि वह नदी पर चलते थे। इस कारण लोग उन्हें जल साधक भी कहते थे। लवकेश रोजाना मांस और मदिरा का भोग लगाते थे। यह बात जब राजा बांसी को पता चली तो वह इसकी सच्चाई जानने मंदिर पहुंचे। वहां रखी मदिरा और मांस दूध तथा मिष्ठान में बदल गया। माता के इस चमत्कार से लोग भयभीत हो गए।
एक दिन बांसी राजदरबार में काशी के कुछ विद्वान आए थे। बाबा लवकेश भी वहां थे। किसी बात पर राजा ने पुरोहितों से उस दिन की तिथि पूछ ली बाबा के मुंह से गलती से द्वितीया तिथि निकल गई। जबकि उसी दिन प्रतिपदा तिथि थी। तिथि को लेकर बाबा और काशी के विद्वानों में ठन गई और निर्णय चांद देखने पर आ गया। रात को जब चांद देखा गया तो लोग दंग रह गए और बाबा की गलती सत्य में परिवर्तित हो गई। इसके बाद से माता की ख्याति बढ़ती गई। इसके बाद बाबा ने मंदिर का नाम जोगमाया रखा था।
जोगमाया मंदिर में दूर दराज से श्रद्धालु आते हैं। यहां पर माता को चुनरी, सिंदूर, रोली, गरी का गोला, बेलपत्र, फल और फूल भक्त अर्पित करते हैं। रामनवमी के दिन प्रसिद्ध मेला लगता है। यहां दूरदराज से श्रद्धालु आते हैं।